परमशक्ति भगवती की कृपा की छाया मे सभी के लिए मंगल कामना ।। हम लोग प्रायः अपने चारों ओर मनुष्य, पशु ,पक्षी के जन्म अथवा उनको मृत्यु को प्राप्त होते देखते हैं।।
इस जीवन रहस्य को जानने अथवा सुलझाने के लिए मनुष्य अनादिकाल से प्रयासरत है l
प्रायः हम सुनते या पढ़ते हैं कि ईश्वर कण कण में विद्यमान है, आज के वैज्ञानिक युग में यह तथ्य पूर्णतः सत्यता को प्राप्त करता है ।।
यदि हम आज के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं, तो पता चलता है कि हमारा
शरीर विभिन्न रासायनिक तत्वों से निर्मित हैं !
आज हम भौतिक शास्त्र में पढ़ते हैं, कि ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है , ना ही उत्पन्न किया जा सकता है, इसके स्वरूप को परिवर्तित किया जा सकता है. यह रासायनिक तत्व ऊर्जा युक्त हैं , इनकी ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है ,न ही उत्पन्न किया जा सकता है ! यह तत्व संगठित होकर अलग अलग स्वरूप युक्त हो जाते हैं!! प्रत्येक शरीर में ईश्वर है तो प्रत्येक कण में ईश्वर विद्यमान है!
सनातन धर्म के अनुसार परम शक्ति ईश्वर ही वह अक्षय ऊर्जा स्वरूप है ,जिसके विभिन्न स्वरूप पृथ्वी पर उपस्थित विभिन्न जड़ तथा चेतना में परिलक्षित होते हैं तथा य़ह सभी सम्मिलित होकर प्रकृति का निर्माण करते हैं। अतः हम कह सकते हैं जो अविनाशी ऊर्जा परम शक्ति वह स्वयं में सबकुछ समाहित किए हुए प्रकृति ही है! यदि हम सनातन के आधार पर अविनाशी ऊर्जा के स्वरुपों को देखे तो चौरासी लाख स्वरूप बताए गए हैं!
आज के वैज्ञानिक परिपेक्ष में देखे तो, वैज्ञानिक रॉबर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण तथ्य दिया है कि पृथ्वी पर 70 लाख जातियाँ अर्थात योनिया उपस्थित हैं! य़ह केवल एक अनुमान है जिनकी संख्या लगभग चौरासी लाख भी हो सकती है l
हमारे वेदों में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है! य़ह आत्मा अथवा जीवन या जीव उस अविनाशी अक्षय ऊर्जा का ही स्वरूप है!
आज के वैज्ञानिक युग में यह प्रमाणित हो चुका है कि हमारे जीवन का एक एक पल तथा एक एक श्वसन सूर्य की किरणों पर निर्भर करता है! सूर्य से प्राप्त उर्जा ही जीवों में संचरित होती है! सूर्य के कारण ही पृथ्वी पर प्राणवायु का संचार होता है।।
उपसंहार के तौर पर मैं य़ह कह सकता हूं कि प्रकृति ही ईश्वर है ,अथवा ईश्वर ही प्रकृति है! यदि हम इसको संरक्षित कर ले ,तो हम सनातन धर्म के सच्चे उपासक होंगे तथा हम अपने चौथे पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष की ओर अग्रसरित होकर उस परम शक्ति मे अथवा प्रकृति में विलीन हो जाएंगे !
प्रकृति के ऊर्जा युक्त कणों से निर्मित शरीर प्रकृति मे विलीन हो जाएगा अथवा पुनः नए स्वरूप में परिवर्तित होने के लिए अपने सूक्ष्म कणों में साधित हो जाएगा! हमारे सनातन में कहा गया है – ‘ईशावास्यं इदं सर्वं ‘ – अर्थात सबकुछ ईश्वरमय है अथवा प्रकृति मे समाहित है ,अतः तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः – उसका त्याग पूर्वक उपभोग करते हुए कर्मयोगी का जीवन व्यतीत करते हुए उस परम शक्ति अथवा प्रकृति मे विलीन हो जाए!
behatrin ,
LikeLike