चन्द्रमा को निहारती गौरी…
युग-युग सा बीते है पल पल,
तन्हाई बन गयी है मृत्युशय्या,
अँधेरा प्रतीत होता आदित्य की किरणों में भी अब, नयन ढूंढते परछाँई आपकी, हे मेरे अर्धनारेश्वर!!
अब नहीं है मेरा मुझ पर ही कोई अधिकार,
एक आलिंगन आपका करेगा मुझ पर अमृत सा कार्य,
तन, मन, आत्मा कर चुकी हूँ समर्पित,
किया है प्रेम का आगाज़,
सुना है यही होती है प्रेम कि शैली यही होता है प्रेम का अंदाज.
झर-झर झरने सी बहती हैं
आसुओं की धाराएं नयनों से मेरे,
नयन हैं मेरे फिर भी प्यासे,
हो रेगिस्तानी धरती जल की एक बूँद को जैसे.
सपने में भी जो मिलन होता हमारा, मिल जाती मुझे जैसे अमृत की एक धारा.
सौभाग्य तो, एक झलक का भी नहीं मिला अब तक, है अमृत की एक बूँद भी दूभर, ईच्छा है कि कहलाऊं अर्धांगिनी आपकी, पर है क्यों क्षण-क्षण मन ये डरता, जाने कैसे होगा ये स्वप्न साकार,
कब देंगे स्वामी आप मुझे प्रेम का ये अधिकार,
हुए ना जो दर्शन आपके इस सावन,
हे मेरे, हे मेरे मन भावन,
डर है मुझे पिघल ना जाये ये हिम,
मेरी तपाग्नी से, आप भी हैं तप में ही लीन, कर रहे ध्यान परम शक्ति का।
कर रहे मुझे अनसुना, हैं फिर भी मुझ में ही तल्लीन ।।
ये हर क्षण तन्हाई के, छीन रहे हैं प्राण मेरे,आइये, बन जाइये मेरे प्राण रक्षक आप, पूरी कर दीजिये इस मन की ये मुराद। मन से मान चुकी हूँ आपको मैं अपना स्वामी, फिर भी, फिर भी यूँ दूर रहने की ना कीजिये अब मनमानी.
ना जानूँ किस क्षण हो जाएँ ये प्राण ईश्वर में लीन, परन्तु रहूंगी फिर भी मैं आप में ही तल्लीन।।
गर स्वीकार हो मेरी ये प्रेम-उपासना,
तो इतना अधिकार दीजिये स्वामी,
की कहलाऊँ मैं केवल आपकी…
आपकी अर्धांगिनी…
मैं मेनका नहीं, जो चाह स्वर्ग गृह त्याग करूं, मैं तो वो दमयंति हूँ, स्वामी संग के लिए महलों को छोड़ आऊं,
कर रक्षा अपने सतीत्व की,
प्राण ही परित्याग करूं ।
जल की एक बूंद हूँ मैं,
साथ जो मिला आपका, रश्मि की भांति,
इंद्रधनुष बन जाएगा, ग़र रश्मि बनी,
तप्ति हुई धूप, वाष्पित, मैं हो जाऊंगी,
इस वाष्पीकरण में भी, समर्पित मैं ही कहलाऊंगी।
तिलोत्तमा सी प्रेमिका हुं,
पथभ्रष्ट ना होने दूंगी,
जीवन के इस पथ पर स्वामी,
ॐकार स्वरुपि प्रेम को ना खोने दूंगी ।।
संकल्प निश्चित है मेरा, शक़ को ना स्थान दें, तप की लौ होगी ये क्षीण, ऐसी बात ना मान लें।
सीता का सतीत्व, रूकमणी का निश्चय मैं, गंगा कि पवित्रता,राधा की प्रेम उपासना मैं, मैं ही शिव संगिनी ।
मैं ही आपकी सती प्रिये,
हृदय में अब स्थान दें,
दें प्रेम का अधिकार,
कहलाऊं आपकी अर्धांगिनी…।।
कहलाऊं आपकी अर्धांगिनी…।।